बाल्यावस्था में अवसाद और अन्य मानसिक बीमारियाँ ।
- बाल्यावस्था जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण होता है, जिसमें बच्चे का मानसिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से विकास होता है।
- इस दौरान बच्चे को विभिन्न प्रकार की मानसिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
नमस्ते दोस्तों ।
- इस ब्लॉग में बच्चों मे होनेवाले मानसिक बीमारियों के बारे में विस्तार से जानेंगे,जिससे जागरूकता और सही समय पर उपचार संभव हो सकता है।
अवसाद
- अवसाद एक गंभीर मानसिक स्थिति है जो बच्चों में भी हो सकती है।
- यह सिर्फ उदासी का एहसास नहीं है, बल्कि यह एक गहन मानसिक स्थिति है जो बच्चे की दिनचर्या, सोचने के तरीके और भावनाओं को प्रभावित करती है।
- बाल्यावस्था में अवसाद के विभिन्न प्रकार होते हैं:
1. प्रमुख अवसाद (प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार)
- यह सबसे सामान्य प्रकार का अवसाद है।
- इसमें बच्चे को अत्यधिक उदासी, रुचियों में कमी, ऊर्जा की कमी, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, और आत्महत्या के विचार आ सकते हैं।
2. द्विध्रुवी अवसाद (दोध्रुवी विकार)
- इसमें अवसाद और उत्तेजना के चरणों का अनुभव होता है।
- बच्चे अत्यधिक ऊर्जा और खुशी के साथ अचानक गहरी उदासी और निराशा में बदल सकते हैं।
3. प्रत्यक्षिक अवसाद (लगातार अवसादग्रस्तता विकार)
- इसे डिस्थीमिया (Dysthymia) भी कहा जाता है।
- इसमें बच्चे को लंबे समय तक हल्के से मध्यम अवसाद के लक्षण होते हैं जो दो साल या उससे अधिक समय तक बने रहते हैं।
4. मौसमी अवसाद (मौसम की वजह से होने वाली बिमारी)
- यह अवसाद आमतौर पर सर्दियों के महीनों में होता है जब सूरज की रोशनी कम होती है।
- इसमें बच्चे को निराशा, आलस्य, और ऊर्जा की कमी का अनुभव हो सकता है।
5. प्रतिकारात्मक अवसाद (अवसादग्रस्त मनोदशा के साथ समायोजन विकार)
- यह अवसाद किसी विशेष घटना या स्थिति के परिणामस्वरूप होता है, जैसे परिवार में मृत्यु, तलाक, या नए स्कूल में जाना।
- इसमें बच्चे को अस्थायी लेकिन तीव्र उदासी और चिंता होती है।
चिंता
- चिंता बच्चों में बहुत आम है और यह उनके दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकती है।
- बच्चों में चिंता के लक्षणों में अत्यधिक चिंता, भय, नींद में समस्या, और शारीरिक लक्षण जैसे पेट दर्द और सिर दर्द शामिल हो सकते हैं।
एडीएचडी (ध्यान आभाव सक्रियता विकार)
- एडीएचडी एक सामान्य मानसिक स्थिति है जिसमें बच्चों में ध्यान केंद्रित करने, व्यवस्थित रहने और अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करने में कठिनाई होती है।
- इस स्थिति में बच्चे अत्यधिक सक्रिय होते हैं और उन्हें अनुशासन में रहना मुश्किल होता है।
आत्मकेंद्रित (ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार)
- आत्मकेंद्रित एक विकासात्मक विक़ार है जिसमें बच्चे सामाजिक संपर्क और संचार में कठिनाई महसूस करते हैं।
- इस स्थिति में बच्चे विभिन्न प्रकार की व्यवहारिक चुनौतियों का सामना करते हैं और उनकी रुचियाँ सीमित होती हैं।
मूड डिसरेगुलेशन
संक्षिप्त परिचय:
- मूड डिसरेगुलेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने मूड को नियंत्रित करने में असमर्थ होता है।
- यह एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जो बच्चों और किशोरों में अधिक आम है।
- इस स्थिति में, व्यक्ति अत्यधिक क्रोधित, चिड़चिड़ा या उदास रहता है और छोटी-छोटी बातों पर भी गुस्सा आ जाता है।
मूड डिसरेगुलेशन के लक्षण
अत्यधिक क्रोध:
- छोटी-छोटी बातों पर भी गुस्सा आना और आवेगपूर्ण व्यवहार करना।
चिड़चिड़ापन:
- अधिकांश समय चिड़चिड़ा और असंतुष्ट रहना।
उदास मूड:
- लगातार उदास या निराश रहना।
आक्रामक व्यवहार:
- दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति।
संबंधों में कठिनाई:
- दूसरों के साथ संबंधों में समस्याएं होना।
अध्ययन और काम में कठिनाई:
- ध्यान केंद्रित करने और कार्य करने में कठिनाई होना।
मूड डिसरेगुलेशन के कारण
मूड डिसरेगुलेशन के सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुए हैं, लेकिन कुछ कारक जो इस स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं, उनमें शामिल हैं:
जैविक कारक:
- मस्तिष्क में रसायनों का असंतुलन, आनुवंशिक कारक
पर्यावरणीय कारक:
- तनावपूर्ण जीवन घटनाएं, परिवार में समस्याएं
मनोवैज्ञानिक कारक:
- कम आत्मसम्मान, चिंता
मूड डिसरेगुलेशन का निदान
- यह स्थिति 6 से 18 साल की उम्र के बच्चों में पाई जाती है और इसका प्रभाव बच्चों के सामाजिक, शैक्षिक और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है।
- मूड डिसरेगुलेशन का निदान एक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा किया जाता है।
- वे व्यक्ति के लक्षणों, व्यवहार और चिकित्सा इतिहास के बारे में जानकारी एकत्र करेंगे।
मूड डिसरेगुलेशन का उपचार
- मूड डिसरेगुलेशन का उपचार व्यक्ति की उम्र, लक्षणों की गंभीरता और अन्य कारकों पर निर्भर करता है।
यदि आपको या आपके किसी परिचित को मूड डिसरेगुलेशन के लक्षण दिखाई देते हैं, तो किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करना महत्वपूर्ण है।
- मूड डिसरेगुलेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों का मूड और भावनाएं मजबूत और धैर्य रूप से कमजोर बनी रहती हैं।
- डीएमडीडी (विघटनकारी मूड डिसरेग्युलेशन डिसऑर्डर) में मुख्य रूप से शामिल है: डीएमडीडी (डिसरप्टिव मूड डिसरेग्युलेशन डिसऑर्डर)
उपचार और प्रबंधन
मनोचिकित्सा:
- एक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के साथ बातचीत करके भावनाओं को समझने और प्रबंधित करने में मदद मिलती है।
दवाएं:
- कुछ मामलों में, डॉक्टर मूड को स्थिर करने के लिए दवाएं लिख सकते हैं।
व्यवहार थेरेपी:
- व्यवहार को बदलने और स्वस्थ तरीकों से भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद मिलती है।
परिवार और समूह थेरेपी:
- परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करना।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता
- माता-पिता और समाज को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना चाहिए।
- बच्चों के व्यवहार में किसी भी बदलाव को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
- सही समय पर निदान और उपचार से बच्चे एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
- बाल्यावस्था में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए।
- जागरूकता, सही समय पर निदान और उपचार से इन समस्याओं का प्रभावी समाधान संभव है।
- माता-पिता और समाज का सहयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
आपके सुझाव कोमेंट सेक्शन मे ज़रूर बताइए।
डॉ. पारस पटेल
एमबीबीएस डीसीएच